बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 भूगोल बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 भूगोलसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 भूगोल - सरल प्रश्नोत्तर
प्रश्न- अल्प विकास की प्रकृति के विभिन्न दृष्टिकोण समझाइए।
उत्तर -
अल्प विकास की प्रकृति को समझने के लिए दो महत्वपूर्ण प्रारूपों की चर्चा करेंगे। ये प्रारूप या दृष्टिकोण एक खास वैचारिक दृष्टिकोण पर आधारित हैं।
(क) नव - मार्क्सवादी निर्भरता प्रारूप - यह प्रारूप मार्क्सवादी विचारधारा का प्रतिफलन है। इस विचारधारा के अनुसार विश्व पूंजीवादी व्यवस्था के विकास में अल्प विकसित देशों का अस्तित्व अपरिहार्य है जिसने पूरी दुनिया को अमीर विकसित और गरीब अल्प विकसित देश में बांट दिया है। इस विचारधारा के अनुसार इस दुनिया में शक्ति का असमान बंटवारा हुआ है और 'केन्द्र' या विकसित क्षेत्र 'परिधि' या अल्प विकसित क्षेत्र के बीच सम्बन्ध बराबरी का नहीं है। अल्प विकसित देशों में कुछ समूह जैसे भूमिपति, व्यापारी, उद्योगपति और राज्य अधिकारियों की आय और सामाजिक हैसियत ऊंची होती है और एक छोटे शासकीय संभ्रांत वर्ग के पास राजनीतिक ताकत होती है। वे अन्तर्राष्ट्रीय पूंजीवादी व्यवस्था में फैली असमानता और शोषण के उपकरण और हथियार के रूप में काम करते हैं। अधिशेष या पूंजीवादी मुनाफा अलग-अलग माध्यमों से 'परिधि' से 'केन्द्र' की ओर चला जाता है। कुछ लोगों का यह मानना है कि इससे अल्प विकसित देशों का स्वतः और स्वाभाविक विकास नहीं हो सकता है। कुछ लोगों का यह मानना है कि इस दिशा में कुछ खास निर्णय लेकर विकास की दिशा में आगे बढ़ा जा सकता है। हालांकि यह भी स्थानीय अभिजात्य वर्ग की आवश्यकताओं से ही निर्धारित होगा।
अल्प विकसित देशों में स्थानीय संभ्रांत वर्ग के उपभोग का स्तर काफी ऊंचा होता है। वे भूसम्पदाओं में निवेश करते हैं। किसी प्रकार का खतरा नहीं उठाते और अपनी आय विदेशी बैंकों में जमा करते हैं। देशों में मौजूद परिस्थितियों को देखते हुए निजी लाभ की दृष्टि से इस प्रकार की कार्यवाही उचित प्रतीत होती है। बड़े पराराष्ट्रीय निगमों के साथ देसी उद्यमियों का टिकना आसान नहीं है। इस माहौल में राज्य ने खुद पूंजीपति बनने की ठानी और राज्य के मिल्कियत वाले उद्यमों की मदद से औद्योगीकरण को वित्तीय सहायता प्रदान की। परन्तु शक्तिशाली विदेशी प्रतियोगियों के सामने टिक न पाने के कारण तथा अपने स्थानीय वाणिज्यिक पूंजीवादी, नौकरशाही और भूमि सम्बन्धी हितों के कारण अन्ततः राज्य के निवेश बुनियादी सुविधाओं (मुख्यतः परिवहन और संचार) और पर्यटन उद्योग तक सीमित रह गए। नव- मार्क्सवादी प्रारूप में इस बात पर भी बल दिया गया है कि किस प्रकार निर्यात क्षेत्र ने विदेशी निवेशकों की सहायता की और यह अधिकांश तृतीयक क्षेत्र जैसे बैंकिंग, बुनियादी ढांचा और प्रशासन के विकास से जुड़ा हुआ था। आन्द्रे गुन्डर फ्रैंक के अनुसार - "निर्यात उद्योग के साथ इससे जुड़े कई और उद्योग उभरे जो अब बेकार के सफेद हाथी बन गए हैं और जो लोग आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक उदारवाद से लाभान्वित हो रहे हैं वे इन पर सवारी किया करते हैं"।
(ख) उदारवादी प्रारूप - उदारवादी और नव-उदारवादी अर्थशास्त्रियों ने इस अवधारणा का विकास किया है कि आज के विकसित आधुनिक समाज कभी अल्प विकसित थे और आज का आधुनिक समाज अतीत में परम्परागत, पिछड़ा और कृषि आधारित समाज था। इसलिए हमें अल्प विकास का दोष विकसित देशों के मत्थे नहीं डालना चाहिए। डब्ल्यू0 डब्ल्यू० रोस्टो ने 'स्टेजेज ऑफ ग्रोथ थ्योरी' यानी विकास के सिद्धान्त को विकसित किया जिसके अनुसार प्रत्येक राष्ट्र को चार चरणों से गुजरना पड़ता है, ये हैं-
(1) परम्परागत और स्थिर निम्न प्रति व्यक्ति आय चरण,
(2) संक्रमण चरण जिस समय विकास के लिए पूर्व शर्त निर्धारित की जाती है,
(3) 'उड़ान' चरण या वृद्धि प्रक्रिया की शुरुआत,
(4) बड़े पैमाने पर औद्योगीकृत उत्पादन और उपभोग चरण।
अंतिम चरण को आत्म-निर्भरता का पर्याय भी माना जाता है।
अधिकांश उदारवादी और नव उदारवादी अर्थशास्त्रियों का यह मानना है कि अल्प विकसित देश भी अपनी आर्थिक वृद्धि को बढ़ाने के लिए घरेलू और विदेशी बचत से पैसे जुटाकर पर्याप्त मात्रा में निवेश कर सकते हैं। यह कहा जाता है कि अल्प विकसित देशों में अपेक्षाकृत पूंजी निर्माण का निम्न स्तर विकास की राह में सबसे बड़ी बाधा है। इसलिए विकास के आकाश में उड़ान भरने के लिए उन्हें विदेशी सहायता या निजी विदेशी निवेश का सहारा लेना पड़ सकता है। अतः पूंजी निवेश की भूमिका विक्रय मशीन जैसी होती है। कीन्स की भी यह अवधारणा थी कि अल्प विकसित देशों का आर्थिक विकास पूंजी के समुचित विकास से जुड़ा हुआ है। इस प्रारूप में विकास को प्रभावित करने वाले संरचनात्मक और संस्थात्मक कारकों को नजरअंदाज किया गया है जबकि पूंजीवादी उद्यमियों द्वारा लाई गई विकास की गति पर बल दिया गया है। हालांकि पराराष्ट्रीय कम्पनियां अपने निजी निवेश के क्रम में और अपना मुनाफा बढ़ाने के लिए प्रौद्योगिकी का विकास करते हैं। उत्पादकता बढ़ती है और अपना मुनाफा बढ़ाने के लिए प्रौद्योगिकी का विकास करते हैं। उत्पादकता बढ़ती है और वे घरेलू बचतों से पैसा हासिल करते हैं। संक्षेप में कहें तो यह कह सकते हैं कि निजी लालच में जनता के लिए उत्पादन हो सकेगा। गुरनार मिरडाल, राउल प्रेबिश और ओसवाल्ड सनकेल जैसे अन्य विद्वानों ने संदेह खड़े किए कि क्या केवल ऐसा करने से विकास अपने आप हो जाएगा। उनका मानना है कि इसमें विकास के छोटे-छोटे द्वीप तो उग आएंगे परन्तु वे चारों ओर अल्प महासागर के विकास से घिरे होंगे।
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- प्रश्न- प्रादेशिक भूगोल में प्रदेश (Region) की संकल्पना का विस्तृत वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- प्रदेशों के प्रकार का विस्तृत वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- प्राकृतिक प्रदेश को परिभाषित कीजिए।
- प्रश्न- प्रदेश को परिभाषित कीजिए एवं उसके दो प्रकारों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- प्राकृतिक प्रदेश से क्या आशय है?
- प्रश्न- सामान्य एवं विशिष्ट प्रदेश से क्या आशय है?
- प्रश्न- क्षेत्रीयकरण को समझाते हुए इसके मुख्य आधारों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- क्षेत्रीयकरण के जलवायु सम्बन्धी आधार कौन से हैं? वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- क्षेत्रीयकरण के कृषि जलवायु आधार कौन से हैं? इन आधारों पर क्षेत्रीयकरण की किसी एक योजना का भारत के संदर्भ में वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भारत के क्षेत्रीयकरण से सम्बन्धित मेकफारलेन एवं डडले स्टाम्प के दृष्टिकोणों पर प्रकाश डालिये।
- प्रश्न- क्षेत्रीयकरण के भू-राजनीति आधार पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- डॉ० काजी सैयदउद्दीन अहमद का क्षेत्रीयकरण दृष्टिकोण क्या था?
- प्रश्न- प्रो० स्पेट के क्षेत्रीयकरण दृष्टिकोण पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- भारत के क्षेत्रीयकरण से सम्बन्धित पूर्व दृष्टिकोण पर प्रकाश डालिये।
- प्रश्न- प्रादेशिक नियोजन से आप क्या समझते हैं? इसके उद्देश्य भी बताइए।
- प्रश्न- प्रादेशिक नियोजन की आवश्यकता क्यों है? तर्क सहित समझाइए।
- प्रश्न- प्राचीन भारत में नियोजन पद्धतियों पर लेख लिखिए।
- प्रश्न- नियोजन तथा आर्थिक नियोजन से आपका क्या आशय है?
- प्रश्न- प्रादेशिक नियोजन में भूगोल की भूमिका पर एक निबन्ध लिखो।
- प्रश्न- हिमालय पर्वतीय प्रदेश को कितने मेसो प्रदेशों में बांटा जा सकता है? वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भारतीय प्रायद्वीपीय उच्च भूमि प्रदेश का मेसो विभाजन प्रस्तुत कीजिए।
- प्रश्न- भारतीय तट व द्वीपसमूह को किस प्रकार मेसो प्रदेशों में विभक्त किया जा सकता है? वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- "हिमालय की नदियाँ और हिमनद" पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- दक्षिणी भारत की नदियों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- पूर्वी हिमालय प्रदेश का संसाधन प्रदेश के रूप में वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भारत में गंगा के मध्यवर्ती मैदान भौगोलिक प्रदेश पर विस्तृत टिप्पणी कीजिए।
- प्रश्न- भारत के उत्तरी विशाल मैदानों की उत्पत्ति, महत्व एवं स्थलाकृति पर विस्तृत लेख लिखिए।
- प्रश्न- मध्य गंगा के मैदान के भौगोलिक प्रदेश पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- छोटा नागपुर का पठार पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- प्रादेशिक दृष्टिकोण के संदर्भ में थार के मरुस्थल की उत्पत्ति, महत्व एवं विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- क्षेत्रीय दृष्टिकोण के महत्व से लद्दाख पर विस्तृत टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- राजस्थान के मैदान पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- विकास की अवधारणा को समझाइये |
- प्रश्न- विकास के प्रमुख कारक कौन-कौन से हैं? वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सतत् विकास का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- सतत् विकास के स्वरूप को समझाइये |
- प्रश्न- सतत् विकास के क्षेत्र कौन-कौन से हैं? वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सतत् विकास के महत्वपूर्ण सिद्धान्त एवं विशेषताओं पर विस्तृत लेख लिखिए।
- प्रश्न- अल्प विकास की प्रकृति के विभिन्न दृष्टिकोण समझाइए।
- प्रश्न- अल्प विकास और अल्पविकसित से आपका क्या आशय है? गुण्डरफ्रैंक ने अल्पविकास के क्या कारण बनाए है?
- प्रश्न- विकास के विभिन्न दृष्टिकोणों पर संक्षेप में टिप्पणी कीजिए।
- प्रश्न- सतत् विकास से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- सतत् विकास के लक्ष्य कौन-कौन से हैं?
- प्रश्न- आधुनिकीकरण सिद्धान्त की आलोचना पर संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए।
- प्रश्न- अविकसितता का विकास से क्या तात्पर्य है?
- प्रश्न- विकास के आधुनिकीकरण के विभिन्न दृष्टिकोणों पर प्रकाश डालिये।
- प्रश्न- डॉ० गुन्नार मिर्डल के अल्प विकास मॉडल पर विस्तृत लेख लिखिए।
- प्रश्न- अल्प विकास मॉडल विकास ध्रुव सिद्धान्त की व्याख्या कीजिए तथा प्रादेशिक नियोजन में इसकी सार्थकता को समझाइये।
- प्रश्न- गुन्नार मिर्डल के प्रतिक्षिप्त प्रभाव सिद्धांत की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- विकास विरोधी परिप्रेक्ष्य क्या है?
- प्रश्न- पेरौक्स के ध्रुव सिद्धान्त पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- गुन्नार मिर्डल के सिद्धान्त की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- क्षेत्रीय विषमता की अवधारणा को समझाइये
- प्रश्न- विकास के संकेतकों पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- भारत में क्षेत्रीय असंतुलन की प्रकृति का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- क्षेत्रीय विषमता निवारण के उपाय क्या हो सकते हैं?
- प्रश्न- क्षेत्रीय विषमताओं के कारण बताइये। .
- प्रश्न- संतुलित क्षेत्रीय विकास के लिए कुछ सुझाव दीजिये।
- प्रश्न- क्षेत्रीय असंतुलन का मापन किस प्रकार किया जा सकता है?
- प्रश्न- क्षेत्रीय असमानता के सामाजिक संकेतक कौन से हैं?
- प्रश्न- क्षेत्रीय असंतुलन के क्या परिणाम हो सकते हैं?
- प्रश्न- आर्थिक अभिवृद्धि कार्यक्रमों में सतत विकास कैसे शामिल किया जा सकता है?
- प्रश्न- सतत जीविका से आप क्या समझते हैं? एक राष्ट्र इस लक्ष्य को कैसे प्राप्त कर सकता है? विस्तारपूर्वक समझाइये |
- प्रश्न- एक देश की प्रकृति के साथ सामंजस्य से जीने की चाह के मार्ग में कौन-सी समस्याएँ आती हैं?
- प्रश्न- सतत विकास के सामाजिक घटकों पर विस्तृत टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- सतत विकास के आर्थिक घटकों का विस्तृत विवरण प्रस्तुत कीजिए।
- प्रश्न- सतत् विकास के लिए यथास्थिति दृष्टिकोण के बारे में समझाइये |
- प्रश्न- सतत विकास के लिए एकीकृत दृष्टिकोण के बारे में लिखिए।
- प्रश्न- विकास और पर्यावरण के बीच क्या संबंध है?
- प्रश्न- सतत विकास के लिए सामुदायिक क्षमता निर्माण दृष्टिकोण के आयामों को समझाइये |
- प्रश्न- सतत आजीविका के लिए मानव विकास दृष्टिकोण पर संक्षिप्त चर्चा कीजिए।
- प्रश्न- सतत विकास के लिए हरित लेखा दृष्टिकोण का विश्लेषण कीजिए।
- प्रश्न- विकास का अर्थ स्पष्ट रूप से समझाइये |
- प्रश्न- स्थानीय नियोजन की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- भारत में नियोजन के विभिन्न स्तर कौन से है? वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- नियोजन के आधार एवं आयाम कौन से हैं? वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भारत में विभिन्न पंचवर्षीय योजनाओं में क्षेत्रीय उद्देश्यों का विवरण प्रस्तुत कीजिए।
- प्रश्न- आर्थिक विकास में नियोजन क्यों आवश्यक है?
- प्रश्न- भारत में नियोजन अनुभव पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- भारत में क्षेत्रीय नियोजन की विफलताओं पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- नियोजन की चुनौतियां और आवश्यकताओं पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- बहुस्तरीय नियोजन क्या है? वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- पंचायती राज व्यवस्था के ग्रामीण जीवन पर पड़ने वाले प्रभाव की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- ग्रामीण पुनर्निर्माण में ग्राम पंचायतों के योगदान की विवेचना कीजिये।
- प्रश्न- संविधान के 72वें संशोधन द्वारा पंचायती राज संस्थाओं में जो परिवर्तन किये गये हैं उनका उल्लेख कीजिये।
- प्रश्न- पंचायती राज की समस्याओं का विवेचन कीजिये। पंचायती राज संस्थाओं को सफल बनाने हेतु सुझाव भी दीजिये।
- प्रश्न- न्यूनतम आवश्यक उपागम की व्याख्या कीजिये।
- प्रश्न- साझा न्यूनतम कार्यक्रम की विस्तारपूर्वक रूपरेखा प्रस्तुत कीजिये।
- प्रश्न- भारत में अनुसूचित जनजातियों के विकास हेतु क्या उपाय किये गये हैं?
- प्रश्न- भारत में तीव्र नगरीयकरण के प्रतिरूप और समस्याओं की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- पंचायती राज व्यवस्था की समस्याओं की विवेचना कीजिये।
- प्रश्न- प्राचीन व आधुनिक पंचायतों में क्या समानता और अन्तर है?
- प्रश्न- पंचायती राज संस्थाओं को सफल बनाने हेतु सुझाव दीजिये।
- प्रश्न- भारत में प्रादेशिक नियोजन के लिए न्यूनतम आवश्यकता कार्यक्रम के महत्व का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- न्यूनतम आवश्यकता कार्यक्रम के सम्मिलित कार्यक्रमों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भारत के नगरीय क्षेत्रों के प्रादेशिक नियोजन से आप क्या समझते हैं?